संजय वर्मा भोजपुरी के एक ऐसे कलाकार का नाम है जिसने कॉमेडी किरदारों मे जैसे जान डाल दि है उनके रोल्स निभाने की अद्भुत कला ने उनका एक प्रशंसक वर्ग तैयार कर दिया है इस समय उनके पास आने वाली फिल्मो मे आधा दर्जन मूवीज़ है। संजय वर्मा ने अपने सफर की कहानी कुछ यूँ बयान की है।
– संजय जि आपके प्रशंसक आपके कलाकार बनने की कहानी भी जानना चाहते है?
* जि हाँ मेरे एक्टर बनने की स्टोरी भी किसी फिल्मी कहानी से कम रोचक नही है। मैं उत्तर प्रदेश के जिला अम्बेडकर नगर का रहने वाला हु। बचपन से एक्टर बनने का ख्वाब देखा करता था। मेरी एक सोच थी कि धरती से ‘अमर होके जाओ’। और मुझे लगा कि फिल्मो मे काम करके भी इंसान अमर हो सकता है कि लोग कलाकारों को उसके मरने के बाद भी याद रखते है। 1999 की बात है मैं उस समय इंटरमीडिएट मे था। अखबार मे मैंने विज्ञापन देखा “कलाकार की ज़रूरत है” । मैंने फोन किया वहां लोगों ने मुझे बुलवाया मुझसे कुछ पैसे लिया मेरा एक ऑडिशन लिया। फिर कहा गया कि आपको शूटिंग के समय बुलाया जायेगा।मैं तो खुद को हीरो समझने लगा लेकिन फिर पता चला कि यह तो धोखा हुआ है। इस चककर मे मैं इंटर मे फेल हो गया। घर वालो ने कहा “हीरो बन लो या पढ़ाई कर लो”
– आपकी कहानी दिलचस्प मोड़ की ओर बढ़ती जा रही है फिर आपने क्या फैसला किया!
* फिर मैंने इंटर की परीक्षा पास की और केवल इस वजह से लखनऊ यूनिवर्सिटी मे दाखला लिया ताकि वहां नाटक मे भाग ले सकुं। कालेज मे नाटक करने के दौरान ही मुझे सुरेश पटेल ने विनोद मिश्रा से मिलवाया जिनके ग्रुप मे मैं जॉइन हुआ। 2003 मे मुझे सुधा चंद्रन के हाथो बेस्ट एक्टर का पुरुस्कार मिला जिसने मुझे हौसला बख़्शा।
– और आप मायानगरी पहुच गए?
* जि हा 31 जुलाई 2003 को मैंने मुम्बई की ट्रेन पकड़ लि। 10 हजार रुपए लेकर जब मैं एक अगस्त को दादर स्टेशन पहुचा तो बेपनाह बारिश ने मेरा स्वागत किया।उस समय एकता कपूर के प्रोडक्शन हाउस बालाजी का नाम मेरे ज़ेहन मे गर्दिश कर रहा था मैंने टैक्सी पकड़ी और रात के दस बजे सीधे बालाजी के दफतर के बाहर पहुच गया। बालाजी दफ्तर को प्रणाम करने के बाद रात मे ही मैं पृथ्वी थेटर जुहू गया उसे भी प्रणाम किया। अंधेरी स्टेशन के बाहर मौजूद मिड टाउन होटल मे रूका। दूसरे दिन अपने होटल से सुबह चाये पीने के लिए नीचे उतरा तो मेरे दोस्त अनिल वर्मा मिल गए। मैं उनके साथ ही मीरा रोड रहने लगा।
– और फिर शुरू हुआ होगा संघर्ष का दौर?
* मैं 3 साल तक स्ट्रगल करता रहा मगर काम नही हुआ। नाटक के दिनों की मेरी फ्रेंड विभा सिंह के पति अमित सिंह प्रोडक्शन मे थे। विभा ने मुझे सुझाव दिया कि मैं प्रोडक्शन जॉइन कर लूं और उस तरह छोटे छोटे रोल भी मिलते रहेंगे मुझे आइडिया पसन्द आया और मैंने प्रोडक्शन मे काम शुरू कर दिया।
– फिर भोजपुरी फिल्मो की ओर कैसे आना हुआ?
* निरहुआ के साथ निर्देशक जगदीश शर्मा उस समय फिल्म “मृत्यंजय”बना रहे थे। उसमे मुझे मनोज टाइगर के पिता का रोल मिला था। मैं अकबर बना था और मनोज टाइगर सलीम के रोल मे थे। पहले दिन मनोज टाइगर के साथ एक गीत की शूटिंग हुई जगदीश जी को मेरा काम पसंद आया। उसके बाद तो मैंने जगदिश जि की तमाम फिल्मो मे काम किया। निद्रेशक हैरी फर्नांडिस और रवि भूषण की फिल्मो मे भी काम किया।
– आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन से हैं?
* निरहुआ हिन्दुस्तानी 2, लुटेरे, चैलेंज, अर्जुन पंडित, तेरे जैसा यार कहाँ, प्रेम रोग जैसी कई फिल्म आने वाली है। प्रेमांशु सिंह की फिल्म बलमा सिपहिया की शूटिंग इन दिनों कर रहा हु।
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* क्या कॉमेडी के अलावा भी आपने कोई जॉनर अपनाया?
* अब तक 65 फिल्मो मे मैंने कॉमेडी ही की है। फिल्म बंधन मे निगेटिव शेड लिए हुए मेरा किरदार था। हमारे दर्शक प्रशंसक कॉमेडियन को बहुत प्यार देते है। वह नही चाहते कि उनका प्रिय कॉमेडियन खलनायक के रूप मे दिखे।मैं महमूद जि का बड़ा फैन रहा हु मुझे लगता है कि लोगो को हँसाना बहुत बड़ा काम है हालांकि कॉमेडी करना मुझे आसान लगता है।
– क्या आपने कुछ हिन्दी प्रोजेक्ट्स भी किए है?
* जी हा मैंने निर्देशक सुभाष कपूर की पहली फिल्म “से सलाम इंडिया” और “फंस गए रे ओबामा”मे काम किया है।हिन्दी फिल्म “रिवाज”मे भी मेरा अच्छा रोल था।मेरी आने वाली फिल्म “मलाल” फेस्टिवल मे गई है।
– अपने सफर मे आप को घरवालो का कितना सहयोग मिला?
* बहुत ज़्यादा। मेरे माता पिता मेरे लिए भगवान सिद्ध हुए। आज मेरी उम्र 35 के करीब है मगर वे लोग आज भी मुझसे पैसे नही मांगते बलकि जब मैं गांव से मुम्बई के लिए अब भी जाता हु तो वे लोग कुछ रुपए मेरी जेब मे डाल देते है।
———— Akhlesh Singh PRO