Soni Jha Got Recognition From Unique Poetry Writing

अनोखे काव्य लेखन से मिली पहचान – सोनी झा

प्रेरणा और अलग नजरिया जिसमें होता है। वह अपने कविता के जरिए लोगों में एक बेहतर अनुभूति कराता है। अपने काव्य से लोगों में एक उमंग जगाता है। शब्दों की सजावट और शब्दों के साथ उसका सही वर्णन जो कोई करता है उसे ही एक काव्य कलाकार कहते हैं। यह कलाकार हमें निसर्ग एवं समाज से जोड़ें रखते हैं।

ऐसी ही एक कलाकार के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जो अपने काव्य से लोगों का मन लुभा रही है। सोनी झा, जो कि झारखंड के जमशेदपुर शहर से हैं उनके पिता पुलिस में देश की सेवा कर रहे हैं और माताजी ग्रहणी है, सोनी झा अपने बाल रूप से ही लोगों और लोगों के मन के साथ जोड़ी है। शायद यही कारण है कि वह इतनी बेहतरीन कविताएं लिखती है, जो लोगों के मन को लुभा जाती है और लोगों को सोचने पर विवश कर देती है।

वह एक तरह से शब्दों को पीरों कर और शब्दों की नक्काशी कर उसे एक काव्य रूप देती है जिसे लोग पढ़े बिना रह नहीं पाते और उसमें ही लीन रह जाते हैं। उनका कहना है कि कविताएं लिखने से पहले कल्पना और अद्भुत विचारों का मिश्रण होना बहुत ही जरूरी है जिससे वह कविताएं और भी खूबसूरत हो जाती है।

उनका यह भी मानना है कि आजकल लोगों में प्रेरणा की कमी हो गई है। लोग अपने और अपने प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। वह चाहती है कि उनकी कविताएं लोगों को प्रेरणा दें। उनकी यही महान सोच उन्हें एक बेहतरीन कवियत्री बनाती है। उनकी कविताओं में इस तरह की सभी खूबियां हैं जो एक इंसान को बदलने के लिए काफी है। 

बंजारो की ज़िन्दगी

बंजारो सी लगती है अब ये ज़िन्दगी…

रेगिस्तान की रेतों की तरह…

हाथों से फिसलती ये ज़िन्दगी…

ना जाने किस मोड़ पर आकर रूकेगी…

ख्वाहिशों के मौसम में…

बदलाव की बयार ना जाने…

किस आंगन में जाकर खत्म होगी।

हारते हुए इंसान को…

इश्क़ की तन्हाइयों ने ज़ख़्म काफी गहरा दिया है वक़्त की अदालत ने…

सबका चेहरा बेनकाब किया…

किसी ने आकर मेरे ज़ख़्म सिले नहीं…

उस गहरे ज़ख़्म पर…

मरहम भी खुद से लगाई हूं जो मेरे अपनों की खंजर से मिली है।

बार बार उठने की कोशिश भी….

नाकाम सी लगने लगी है ,हर दफा…

रिश्तों की किश्त ढोते ढोते…

ज़िन्दगी उलझ सी गई है ।अपनी उलझन को…

सुलझा सुलझा कर…

अब थक सी गई हूं।

आंखों में नमी…

अब बचा नहीं, किसी और से अब दिल लगा नहीं…

किसी के इंतजार में…

पत्थर दिल सी हो गई हूं…

ख्वाब टूटकर बिखर गए…

मगर किस्मत से हार नहीं मानी हूं। तन्हाइयों का साथ देते देते…

खुद को कही भूल बैठी हूं…

खुशियों की दस्तक से…

इक अनकही सी फासला बना बैठी हूं …

अब खुद को सौप देना चाहती हूं…

उन खामोशियों को…

जिसके बाद कोई कीमत ना चुकानी पड़ी…

किसी को आवाज़ लगाने की।

अब बस थक कर सो जाना चाहती हूं…

तुम्हारी बाहों में सुकून मिले ऐसी ख्वाइश से खुद को सौप देना चाहती हूं…

उन आसमानों के बाहों में…

जहां से सब कुछ धुंधला सा लगे…

जहां मुझे कोई ढूंढ़ ना सके।

बस बहुत जी ली…

ये खोखली सी ज़िन्दगी…

अब हार जाना चाहती हूं…

खुद की ख्वाहिशों भरी उम्मीदों से…

धड़कन को बंद कर ,अपनी सांसों को मिला देना चाहती हूं…

आसमानों के खुली फिज़ाओं में, सोचती हूं …

एक बार ही सही अपने ख्वाब को मुकम्मल कर लूं…

अपनी होंठों की मुस्कान को…

फिर से वापिस ले आऊ…

छोड़ जाऊ जमाने के  इन रीति रिवाजों को…

और जी लू अपने अल्हड़पन को…

बेझिझक सी, बेपरवाह सी, बेधड़क सी, बेख़ौफ़ सी ।।

 

खुशियों की तलाश

ना ही तुम हमें किसी बंधन में बांध पाए ,

ना ही चाहत के सिलसिले में मेरा हाथ थाम पाए।

ख्वाहिशों के मौसम में तुम भी कुछ बदल से गए,

मेरे जज्बातों की आंधी में तुम भी थोड़ा बहक से गए ।

तुम्हें सोच के ख़ुद के ख्वाबों से हम रिश्ता निभा नहीं पाए,

तेरे लिए हम सब कुछ पाकर भी खुद से ही हार गए।

हर दफा ,गलत इंसान से इश्क़ करने की गुस्ताखी करते गए ,

मगर ये कम्बक्त दिल भी सबको माफ करके ,दिल के टुकड़ों को खुद से ही जोड़ते गए।

कभी वो मिला ही नहीं, जिनकी मोहब्बत मिलने से छणिक भर भी दिल को सुकून मिले।

जो भी मिले रास्ते में ,बस मेरे टूटे हुए दिल को जोड़कर ,फिर से तोड़ते गए।

हम मोहब्बत की हर तकलीफ को ,दिल के किसी कोने में दफन करते गए।

बार बार टूटकर बिखरने के बावजूद भी किसी और के लिए खुद की ज़िन्दगी को तबाह करते गए।

एक टूटे हुए दर्पण की तरह, अपने दिल के भी टुकड़े टुकड़े करते गए।

हर दफा ना चाहते हुए भी झूठी तसल्ली देकर दिल को दिलासा दिलाते गए।

हर तकलीफों को किनारे रखकर, सुकुन की तलाश में ज़िन्दगी को जिते चले गए।

दिल्लगी ना करने की कोशिश में तुझसे दूर होते गए ,

फिर भी, ना जाने क्यूं , तुझे देखकर ये ख्याल हमेशा बदलते गए।

झूठ और फरेब से भरे इश्क़ की इन गलियों में ,दिल अपना लुटाते गए

मोहब्बत और किस्मत के खेल में जीत हासिल करने की बजाय खुद के दिल को हारते गए।

भला किस्मत से इश्क़ कब जीत पाया है -२

ये जानकर दिल को समझाते गए और इश्क़ की दुनिया में खुद की खुशियां तलाशते गए।

इश्क़ की दुनिया में खुद की खुशियां तलाशते गए ।।


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